लेकिन जब यही पानी राजनीति का हथियार बन जाए,
तो सूखती सिर्फ नदियां नहीं, सूखती जनता की उम्मीदें भी हैं।
हरियाणा और पंजाब के बीच पानी की लड़ाई अब सिर्फ राजनीतिक नहीं, बल्कि सामाजिक संकट बनती जा रही है। ताजा मामला पंजाब की AAP सरकार का हरियाणा को मिलने वाले भाखड़ा नहर के पानी में कटौती करने का है। जहां पहले 8500 क्यूसेक पानी मिलना चाहिए था, अब सिर्फ 4000 क्यूसेक ही दिया जा रहा है। इससे हरियाणा के कई जिलों में जलसंकट खड़ा हो गया है।
हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सैनी ने कहा कि ये सिर्फ पानी की नहीं, बल्कि पीने के पानी की लड़ाई है। उन्होंने ये भी चेतावनी दी कि अगर हरियाणा में पानी कम आया, तो दिल्ली की पेयजल सप्लाई भी प्रभावित होगी, क्योंकि वही पानी दिल्ली को भी जाता है।
वहीं पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान का कहना है कि हरियाणा 103% से भी ज्यादा पानी इस्तेमाल कर चुका है, जबकि पंजाब को अभी तक सिर्फ 89% ही मिला है।” उन्होंने SYL मुद्दे को हरियाणा की राजनीति से प्रेरित ड्रामा बताया और इसे वैज्ञानिक तरीके से हल करने की बात कही।
एसवाईएल नहर का विवाद 1966 में हरियाणा के गठन के साथ शुरू हुआ, लेकिन इस विवाद की असल शुरुआत 1955 में हुई थी, जब भारत सरकार ने रावी और व्यास नदियों के पानी के बंटवारे के लिए एक योजना प्रस्तावित की। इस योजना के तहत, पंजाब, राजस्थान और जम्मू-कश्मीर के बीच इन नदियों के पानी का उचित वितरण करने का निर्णय लिया गया। 1955 की इस योजना के बाद, पानी के बंटवारे को लेकर विभिन्न राज्य सरकारों के बीच तनाव बढ़ने लगा।
1994 में, हरियाणा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की, जिसके बाद 2004 में पंजाब ने ‘पंजाब टर्मिनेशन ऑफ एग्रीमेंट एक्ट’ पारित किया, जिससे एसवाईएल नहर के निर्माण पर रोक लग गई। सुप्रीम कोर्ट ने 2016 में इस एक्ट को असंवैधानिक करार दिया और पंजाब सरकार को एसवाईएल नहर का निर्माण करने का आदेश दिया। पंजाब सरकार ने इस आदेश को भी नकारते हुए नहर के निर्माण को स्थगित कर दिया और किसानों को उनकी भूमि वापस कर दी। आज तक वह आदेश वहीं लटका हुआ है।
दोनो राज्य के इस मुद्दे पर अलग अलग पक्ष है। हरियाणा का कहना है कि SYL नहर उसका कानूनी और प्राकृतिक हक है, क्योंकि उसे उसकी आबादी और कृषि जरूरतों के अनुसार पानी नहीं मिल रहा।