आज बात करेंगे पर्यटन निगम के पूर्व चेयरमैन अरविंद यादव की राजनीति की। अध्यक्ष की कुर्सी पर ओमप्रकाश धनखड़ के रहते और मुख्यमंत्री की कुर्सी पर मनोहरलाल के रहते यह तय सा माना जा रहा था कि 2024 के चुनाव में रेवाड़ी विधानसभा की टिकट उन्हीं को मिलेगी, परंतु अतीत के कड़वे अनुभवों का जिक्र अवश्य होता था। हम डेढ़ दशक से भी अधिक समय से यह सुनते आ रहे हैं इस बार अरविंद यादव की टिकट लगभग पक्की है, लेकिन 2014 के चुनाव में जहां रणधीर कापड़ीवास दीवार बनकर उनके आगे खड़े हो गए और भाजपा से विधायक बन गए, वहीं 2019 में राव इंद्रजीत सिंह की मदद से सुनील मुसेपुर, अरविंद यादव की राह का रोड़ा बन गए। हालांकि तब मुसेपुर मामूली अंतर से चुनाव हार गए, मगर अरविंद की राह तो रुक ही गई। इस बार बाजी बदली हुई है। सीएम की कुर्सी पर नायब सैनी है और अध्यक्ष की कुर्सी मोहनलाल बड़ोली के पास है। वरिष्ठ कार्यकर्ता होने के कारण अरविंद को इन दोनों को ही अपने बारे में बताने की जरूरत नहीं है, लेकिन असली सवाल यह है कि क्या इस बार भी कोई नया या पुराना चेहरा अरविंद यादव की राह में दीवार बनकर खड़ा पाएगा। अरविंद यादव बेशक खुद को स्वभाविक दावेदार मानते रहे हों, लेकिन उन्हें टिकट के कुछ नए दावेदारों के नाम चलने पर गुस्सा होने की जरूरत नहीं है।
आज इसी का जवाब जानने का प्रयास करते हैं कि उनकी राह में इस बार कौन दीवार बनकर खड़ा हो सकता है। हमारी निगाह में इस बार ट्रिपल एस नहीं बल्कि फोर एस में से कोई भी दीवार बनकर खड़ा हो सकता है। इनमें एक S जहां सुनील मुसेपुर है तो दूसरे S हैं सतीश खोला। तीसरे S सन्नी यादव हैं तो चौथे S हैं सतीश यादव। हमने सतीश यादव का नाम सबसे अंत में इसलिए लिखा है, क्योंकि हमारी नजर में उनकी भाजपा से टिकट की दावेदारी का स्थान ट्रिपल एस के बाद में है। चुनाव लड़ने की संभावना की बात करनी हो तो हम उनका नाम पहले स्थान पर रख सकते हैं, लेकिन यहां पर बात अरविंद यादव की राह में रुकावटों की हो रही है। अरविंद यादव के सामने यह 4S की दीवार ही सबसे बड़ी चिंता का विषय है। इस बार अरविंद यादव को शायद कापड़ीवास से भी पार पाना होगा, क्योंकि रणधीर सिंह कापड़ीवास, मनोहरलाल की सलाह के बावजूद खुद को बुजुर्ग मानने के लिए तैयार नहीं है। इतना ही नहीं उन्होंने मुकेश कापड़ीवास के रूप में नया चेहरा भी आगे कर दिया है। जिन लोगों को यह लगता है कि इस बार भाजपा किसी गैर अहीर को भी चुनावी मैदान में उतार सकती है, वह वंदना पोपली का नाम भी आगे कर रहे हैं। हम अपनी ओर से अभी इस तरह की संभावना पर अपना विचार व्यक्त नहीं कर रहे हैं, क्योंकि हमें लगता है अहीरवाल की राजनीतिक राजधानी में मुख्य मुकाबला अहीर उम्मीदवारों के बीच ही होगा, लेकिन राजनीति में हैरत में डालने वाले फैसले होते रहे हैं। हम उन्हें आउट आफ रेस नहीं कह रहे हैं।
कुल मिलाकर हम कह सकते हैं कि इस बार छह से अधिक नेताओं ने भाजपा की टिकट पाने के लिए पूरा जोर लगाया हुआ है। रेवाड़ी विधानसभा चुनाव की तैयारी पर जोर शोर से शुरू की हुई है। अरविंद यादव ने काफी समय पूर्व अपना चुनाव कार्यालय खोल दिया था। उसकी खूब चर्चा हुई थी, लेकिन अभी उन्होंने वहां पर अधिक समय बिताना शुरू नहीं किया है। उनके तीन प्रचार वाहन गावों में घूम रहे हैं। बेटी अदिति अपने पिता के प्रचार की कमान संभाल चुकी है। सुनील मुसेपुर की उम्मीद केवल राव इंद्रजीत है। उनकी आस का दूसरा कारण यह है कि अगर पार्टी उन चेहरों को चुनाव में फिर से टिकट देती है, जिनकी हार का अंतर पांच हजार से कम का था तो उनकी लाटरी अपने आप लग जाएगी। इसी क्रम में सतीश खोला भी जनसंपर्क में जुटे हुए हैं। उन्हें उम्मीद है अपने कार्यालय में बैठकर जिन लोगों की समस्याएं दूर की गई है या जिन्हें सरकारी योजनाओं का लाभ दिलवाया है, उनके वोट टपककर उनकी झोली भर देंगे। वह शहर के साथ-साथ गांव में भी जा रहे हैं। आप अपनी स्क्रीन पर इन नेताओं के जनसंपर्क को देख भी सकते हैं।
सन्नी यादव ने भी खुद को सक्रिय कर दिया है। हाल ही में वह गंज बाजार और कटला बाजार में सीसीटीवी कैमरे लगवाकर सेवा से राजनीति की ओर कदम बढ़ा चुके हैं। राजनीति में तो सन्नी पहले से हैं। पिछला चुनाव निर्दलीय लड़ा था, लेकिन उन्हें लगता है कि भाजपा इस बार बदलाव करेगी तो राव इंद्रजीत का आशीर्वाद किसी दूसरे एस को नहीं बल्कि उन्हें ही मिलेगा। अब बात करते हैं सतीश यादव की। सतीश यादव का अपने समर्थकों के बीच यह तर्क है कि अगर भाजपा उन्हें टिकट देती है तो कापड़ीवास परिवार का साथ भी उन्हें मिलेगा और दूसरे नेताओं का भी। सर्वे की परीक्षा में भी वह मेरिट से पास होंगे, लेकिन उनकी राह में RI सबसे बड़ा रोड़ा है। RI मतलब राव इंद्रजीत सिंह।
हम मुकेश कापड़ीवास के प्रचार का अंदाज आपको बताना भूल गए। उनके प्रचार का अंदाज भी दूसरों से कम नहीं है। वह अपने ताऊ रणधीर कापड़ीवास के पुराने समर्थकों के बीच पहुँचकर आशीर्वाद ले रहे हैं। वह न केवल भाजपा के दिग्गज नेताओं के पास पहुंचकर उनसे आशीर्वाद मांग रहे हैं, बल्कि मतदाताओं के बीच पहुंचकर खुद को एक ऐसे नेता के रूप में भी प्रस्तुत कर रहे हैं, जो उनके अधिकारों के लिए लड़ सकता है। वंदना पोपली ने जिला प्रधान की कुर्सी संभालते समय जिस तरह से विभिन्न संगठनों का समर्थन प्रदर्शित किया है, वह उनकी चुनावी राजनीति की इच्छा को प्रकट कर रहा है। हम यहां पर केवल भाजपा की राजनीति की बात कर रहे हैं। कुछ लोग पांचवें एस की बातें भी कर रहे हैं। संसदीय बोर्ड की सदस्य डा. सुधा यादव को भी रेवाड़ी लाने का सुझाव दे रहे हैं। ऐसे में अरविंद के सामने रुकावटें कम नहीं है। देखना यह है की वह सामने नजर आ रही इन दीवारों से कैसे पार पाएंगे, क्योंकि उनके लिए भी इस बार का मुकाबला, अब नहीं तो कभी नहीं जैसा होगा।