HARYANA के 3 लाल परिवारों और राजघरानों की राजनीति पर बात, विधानसभा का बजट सत्र

विधानसभा के बजट सत्र में नजर आई विरासत की राजनीति की। विशेष रूप से तीन लालों की, यानी भजनलाल, बंसीलाल और देवीलाल परिवार की और साथ ही चौधरी रणबीर सिंह और राव बिरेंद्र सिंह जैसे दिग्गज नेताओं के वारिसों के विधानसभा में अपनाए गए रुख की। विधानसभा में चौधरी देवीलाल, बंसीलाल व भजनलाल परिवारों के प्रतिनिधि मौजूद हैं। हरियाणा के चौथे लाल मनोहरलाल वह अविवाहित हैं, लेकिन देवी, बंसी और भजन परिवार की विरासत अभी भी कायम है। इस बार सदन में राजघराने का भी धमाल देखने को मिला। चौ. रणबीर हुड्डा के लाल भूपेंद्र सिंह हुड्डा तो हमेशा की तरह मोर्चा संभालते ही आए, लेकिन इस बार शमशेर सुरजेवाला के वंशज भी छाए रहे। आपने इस बार सदन में आरती सिंह राव, श्रुति चौधरी, अर्जुन चौटाला व आदित्य चौटाला जैसे नए चेहरों की भूमिका को भी देखा है। विधानसभा में छाई रही दो लालों की जहां तीसरी व चौथी पीढ़ी छाई रही वहीं भजनलाल के बेटे चंद्रमोहन मौन से रहे। हम यह कहते आए हैं कि यदि सही ढंग से सियासत की जाए और अपनी जाति के अलावा दूसरे समाज के मतदाताओं को भी जोड़ने का प्रयास किया जाए तो वंशवाद की बेल लंबे समय तक हरी रह सकती है।इस बार भी सदन में वंशवाद व परिवारवाद का एक साथ जलवा रहा। देवीलाल, बंसीलाल व भजन लाल के अलावा राजनीति में दूसरे चर्चित खानदानों की बात करें तो राव बिरेंद्र सिंह, चौधरी रणबीर सिंह व शमशेर सिंह सुरजेवाला के वंशज भी छाए रहे। इस बार चौधरी देवीलाल की दूसरी व तीसरी पीढ़ी विधानसभा में नहीं पहुंच पाई, लेकिन चौथी पीढ़ी से पड़पौत्र अर्जुन चौटाला और आदित्य चौटाला विधायक बनकर देवीलाल की आवाज बने हुए हैं। दोनों ने सदन में अपनी छाप छोड़ी। हालांकि पिछली बार जननायक जनता पार्टी बनाकर, राजनीति के नायक बनकर उभरे अजय चौटाला व दुष्यंत चौटाला का कुनबा इस बार कामयाब नहीं हुआ, मगर अभय सिंह खुद हार कर भी अपने बेटे की जीत सुनिश्चित कराने में कामयाब रहे थे। चौ. बंसीलाल के पौत्री श्रुति ने बतौर कैबिनेट मंत्री अपनी छाप छोड़ी। अपने दादा बंसीलाल की विरासत को संभालती हुई नजर आई। हालांकि बंसीलाल की पुत्रवधू किरण चौधरी राज्यसभा में हैं, लेकिन श्रुति ने हरियाणा की राजनीति में अपनी पहचान बढ़ाना शुरू कर दिया है। हालांकि भजनलाल की विरासत अपने पास होने का दावा करने वाले भजनलाल के छोटे बेटे कुलदीप बिश्नोई और भव्य बिश्नोई इस बार सदन में नहीं है, मगर भजनलाल के बड़े बेटे चंद्रमोहन बिश्नोई सदन में भजन की छाया का अहसास करवा रहे हैं। यह सच है की चंद्रमोहन न मुखर हैं न छाप छोड़ रहे हैं, लेकिन एक बात सही है कि वह भजनलाल की विरासत को जिंदा रखे हुए हैं। विरासत की सियायत में सबसे बड़ा नाम है भूपेंद्र सिंह हुड्डा का। अपने दादा व पिता की तरह भूपेंद्र सिंह हुड्डा भी विरासत की राजनीति के पर्याय हैं। विपक्ष के नेता का टाइटल इस बार भी बेशक उनके पास नहीं था, लेकिन कांग्रेस की गाड़ी वही खींचते नजर आए। उन्होंने सत्ता पक्ष को घेरने के लिए अपने तरकश के हर तीर चलाए। इसी तरह विरासत की राजनीति में एक बड़ा नाम है राव नरबीर सिंह का भी है। राव नरबीर सिंह के दादा राव मोहर सिंह व उनके पिता राव महाबीर सिंह दोनों ही सदन के चेहरे रहे थे। विरासत की राजनीति में ही एक नया नाम इस बार जुड़ा है आदित्य सुरजेवाला का। शमशेर सिंह सुरजेवाला के पौत्र और रणदीप सुरजेवाला के बेटे आदित्य ने पहली बार सदन में पर्यावरण जैसे गंभीर मुद्दे उठाकर पहुंचकर खुद की धमाकेदार उपस्थिति दर्ज करवाई है। अब अगर सदन में राजघराने की बात करें तो पूर्व मुख्यमंत्री रहे राव बिरेंद्र सिंह की पौत्री आरती राव का नाम उल्लेखनीय है। हालांकि अभी आरती के पिता राव इंद्रजीत सिंह के नाम ही राव बिरेंद्र की विरासत है, लेकिन राव इंद्रजीत खुले मंचों से बेटी को विरासत सौंपने की बात कह चुके हैं। सदन में बतौर कैबिनेट मंत्री आरती राव ने खुद को साबित करने का सफल प्रयास किया है। आरती सिंह राव की राजनीति को आप विरासत की सियासत के साथ-साथ परिवारवाद व वंशवाद की सियासत भी कह सकते हैं, लेकिन वह किसी की कृपा से नहीं जनता की कृपा से सदन में पहुंची है। जनता की मुहर का मतलब है परिवारवाद की चर्चा के बीच जनता को यही परिवार पसंद है। निष्कर्ष की बात करें तो भजनलाल के लाल चंद्रमोहन बिश्नोई को छोड़कर इस बार सदन में विरासत की राजनीति भी चमकी और परिवारवाद की राजनीति भी फली-फूली। आपको सदन में आरती सिंह राव, श्रुति चौधरी, आदित्य चौटाला, अर्जुन चौटाला व आदित्य चौटाला जैसे नए चेहरों की भूमिका कैसी लगी। अपनी राय जरूर दिजिए ।

विधानसभा के बजट सत्र में नजर आई विरासत की राजनीति की। विशेष रूप से तीन लालों की, यानी भजनलाल, बंसीलाल और देवीलाल परिवार की और साथ ही चौधरी रणबीर सिंह और राव बिरेंद्र सिंह जैसे दिग्गज नेताओं के वारिसों के विधानसभा में अपनाए गए रुख की। विधानसभा में चौधरी देवीलाल, बंसीलाल व भजनलाल परिवारों के प्रतिनिधि मौजूद हैं। हरियाणा के चौथे लाल मनोहरलाल वह अविवाहित हैं, लेकिन देवी, बंसी और भजन परिवार की विरासत अभी भी कायम है। इस बार सदन में राजघराने का भी धमाल देखने को मिला। चौ. रणबीर हुड्डा के लाल भूपेंद्र सिंह हुड्डा तो हमेशा की तरह मोर्चा संभालते ही आए, लेकिन इस बार शमशेर सुरजेवाला के वंशज भी छाए रहे। आपने इस बार सदन में आरती सिंह राव, श्रुति चौधरी, अर्जुन चौटाला व आदित्य चौटाला जैसे नए चेहरों की भूमिका को भी देखा है।

विधानसभा में छाई रही दो लालों की जहां तीसरी व चौथी पीढ़ी छाई रही वहीं भजनलाल के बेटे चंद्रमोहन मौन से रहे। हम यह कहते आए हैं कि यदि सही ढंग से सियासत की जाए और अपनी जाति के अलावा दूसरे समाज के मतदाताओं को भी जोड़ने का प्रयास किया जाए तो वंशवाद की बेल लंबे समय तक हरी रह सकती है।इस बार भी सदन में वंशवाद व परिवारवाद का एक साथ जलवा रहा। देवीलाल, बंसीलाल व भजन लाल के अलावा राजनीति में दूसरे चर्चित खानदानों की बात करें तो राव बिरेंद्र सिंह, चौधरी रणबीर सिंह व शमशेर सिंह सुरजेवाला के वंशज भी छाए रहे।

इस बार चौधरी देवीलाल की दूसरी व तीसरी पीढ़ी विधानसभा में नहीं पहुंच पाई, लेकिन चौथी पीढ़ी से पड़पौत्र अर्जुन चौटाला और आदित्य चौटाला विधायक बनकर देवीलाल की आवाज बने हुए हैं। दोनों ने सदन में अपनी छाप छोड़ी। हालांकि पिछली बार जननायक जनता पार्टी बनाकर, राजनीति के नायक बनकर उभरे अजय चौटाला व दुष्यंत चौटाला का कुनबा इस बार कामयाब नहीं हुआ, मगर अभय सिंह खुद हार कर भी अपने बेटे की जीत सुनिश्चित कराने में कामयाब रहे थे।

चौ. बंसीलाल के पौत्री श्रुति ने बतौर कैबिनेट मंत्री अपनी छाप छोड़ी। अपने दादा बंसीलाल की विरासत को संभालती हुई नजर आई। हालांकि बंसीलाल की पुत्रवधू किरण चौधरी राज्यसभा में हैं, लेकिन श्रुति ने हरियाणा की राजनीति में अपनी पहचान बढ़ाना शुरू कर दिया है।

हालांकि भजनलाल की विरासत अपने पास होने का दावा करने वाले भजनलाल के छोटे बेटे कुलदीप बिश्नोई और भव्य बिश्नोई इस बार सदन में नहीं है, मगर भजनलाल के बड़े बेटे चंद्रमोहन बिश्नोई सदन में भजन की छाया का अहसास करवा रहे हैं। यह सच है की चंद्रमोहन न मुखर हैं न छाप छोड़ रहे हैं, लेकिन एक बात सही है कि वह भजनलाल की विरासत को जिंदा रखे हुए हैं।

विरासत की सियायत में सबसे बड़ा नाम है भूपेंद्र सिंह हुड्डा का। अपने दादा व पिता की तरह भूपेंद्र सिंह हुड्डा भी विरासत की राजनीति के पर्याय हैं। विपक्ष के नेता का टाइटल इस बार भी बेशक उनके पास नहीं था, लेकिन कांग्रेस की गाड़ी वही खींचते नजर आए। उन्होंने सत्ता पक्ष को घेरने के लिए अपने तरकश के हर तीर चलाए।

इसी तरह विरासत की राजनीति में एक बड़ा नाम है राव नरबीर सिंह का भी है। राव नरबीर सिंह के दादा राव मोहर सिंह व उनके पिता राव महाबीर सिंह दोनों ही सदन के चेहरे रहे थे। विरासत की राजनीति में ही एक नया नाम इस बार जुड़ा है आदित्य सुरजेवाला का। शमशेर सिंह सुरजेवाला के पौत्र और रणदीप सुरजेवाला के बेटे आदित्य ने पहली बार सदन में पर्यावरण जैसे गंभीर मुद्दे उठाकर पहुंचकर खुद की धमाकेदार उपस्थिति दर्ज करवाई है।

अब अगर सदन में राजघराने की बात करें तो पूर्व मुख्यमंत्री रहे राव बिरेंद्र सिंह की पौत्री आरती राव का नाम उल्लेखनीय है। हालांकि अभी आरती के पिता राव इंद्रजीत सिंह के नाम ही राव बिरेंद्र की विरासत है, लेकिन राव इंद्रजीत खुले मंचों से बेटी को विरासत सौंपने की बात कह चुके हैं। सदन में बतौर कैबिनेट मंत्री आरती राव ने खुद को साबित करने का सफल प्रयास किया है। आरती सिंह राव की राजनीति को आप विरासत की सियासत के साथ-साथ परिवारवाद व वंशवाद की सियासत भी कह सकते हैं, लेकिन वह किसी की कृपा से नहीं जनता की कृपा से सदन में पहुंची है। जनता की मुहर का मतलब है परिवारवाद की चर्चा के बीच जनता को यही परिवार पसंद है। निष्कर्ष की बात करें तो भजनलाल के लाल चंद्रमोहन बिश्नोई को छोड़कर इस बार सदन में विरासत की राजनीति भी चमकी और परिवारवाद की राजनीति भी फली-फूली। आपको सदन में आरती सिंह राव, श्रुति चौधरी, आदित्य चौटाला, अर्जुन चौटाला व आदित्य चौटाला जैसे नए चेहरों की भूमिका कैसी लगी। अपनी राय जरूर दिजिए ।

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