सत्रह साल पुराने जज नोट कांड में जस्टिस निर्मल यादव बरी हो गई। CBI कोर्ट ने उन्हें सबूतों के अभाव में बरी कर दिया। मामले की जांच कर रही सीबीआइ उनके खिलाफ आरोप साबित नहीं कर पाई। सीबीआइ जज अलका मलिक का यह फैसला कैप्टन अजय सिंह यादव के परिवार के लिए खुशियां लेकर आया है।
जैसे ही यह खबर आई वैसे ही कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कैप्टन अजय सिंह यादव के परिवार में खुशियां छा गई। निर्मल यादव, कांग्रेस ओबीसी विभाग के राष्ट्रीय चेयरमैन व पूर्वमंत्री कैप्टन अजय सिंह यादव की बहन है। निर्मल के भतीजे चिरंजीव राव भी रेवाड़ी से पूर्व विधायक रहे हैं। पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट की जस्टिस रही निर्मल यादव के खिलाफ जब 17 साल पूर्व मामला दर्ज हुआ था, तब कैप्टन परिवार पर भ्रष्टाचार के कारण गहरा दाग लगा था। आज के फैसले से परिवार को राहत मिली है। हम आपको यह बता दें कि उस समय के महाधिवक्ता का मुंशी 15 लाख रुपये लेकर पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट की तत्कालीन न्यायाधीश निर्मलजीत कौर की कोठी पर पहुंच गया था। निर्मलजीत के माध्यम से मामला पुलिस तक पहुंचा तो जस्टिस निर्मल यादव की आफत बढ़ गई।
मुंशी के हवाले से यह बताया गया कि 15 लाख रुपये जस्टिस निर्मलजीत कौर की बजाय जस्टिस निर्मल यादव के घर दिए जाने थे। हाईप्रोफाइल मामला होने के कारण जब न्यायपालिका में हड़कंप मचा तो बाद में यह केस सीबीआइ को ट्रांसफर कर दिया गया। निर्मल यादव व अन्य पर यह आरोप था कि पंचकूला के एक प्लाट के मामले में एक फैसले को प्रभावित करने के लिए 15 लाख की रिश्वत दी गई थी, लेकिन नाम की गलती के चलते यह रकम निर्मल यादव के घर की बजाय निर्मलजीत कौर के घर पहुंच गई। रिश्वत का मामला सामने आने के बाद जस्टिस निर्मल यादव का तबादला उत्तराखंड हाईकोर्ट कर दिया गया था। वर्ष 2011 में उन्होंने रिटायरमेंट ली थी। मामले की जांच शुरू में चंडीगढ़ पुलिस ने की थी लेकिन 15 दिन के बाद ही यह मामला सीबीआई को सौंप दिया गया था। वर्ष 2009 में सीबीआई ने अपनी क्लोजर रिपोर्ट दाखिल की थी, लेकिन सीबीआई कोर्ट ने इसको अस्वीकार कर दिया था। दोबारा जांच के आदेश दिए गए थे। वर्ष 2010 में तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश ने न्यायमूर्ति निर्मल यादव के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति दे दी थी।
वर्ष 2011 में राष्ट्रपति से मंजूरी मिलने के बाद 3 मार्च 2011 को निर्मल यादव के खिलाफ चार्जशीट दाखिल हुई। वर्ष 2013 में सीबीआई कोर्ट ने आरोप तय किए और मुकदमे की सुनवाई शुरू की। वर्ष 2020 में कोविड-19 की महामारी के चलते इस केस की सुनवाई प्रभावित हुई। वर्ष 2024 में 76 गवाहों की गवाही पूरी हुई, जबकि 10 गवाह मुकदमे के दौरान पलट गए। सीबीआई ने 2011 में जो चार्जशीट दायर की थी, उसमें जज निर्मल यादव के अलावा कई अन्य लोगों को भी आरोपी बनाया गया, लेकिन आज 29 मार्च 2025 को आए फैसले ने निर्मल को कानून की नजर में निर्मल साबित कर दिया है।