राव इंद्रजीत व नरबीर के बीच कैसे संतुलन बनाएगी पार्टी, विधायकों को कितना मिलेगा भाव

हरियाणा में नगर निगम चुनाव का बिगुल कभी भी बज सकता है। गुरुग्राम के लोगों को भी दो वर्ष से चुनाव का इंतजार है। हालांकि जब तक चुनाव प्रक्रिया शुरू नहीं होती, तब तक यह दावा करना सही नहीं होगा कि चुनाव फरवरी तक संपन्न हो ही जाएंगे, लेकिन पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के निर्देशों को देखते हुए चुनाव होने की संभावना प्रबल है। अभी मेयर पद के ड्रा को लेकर भी स्थिति स्पष्ट नहीं है। मेयर पद किस श्रेणी के लिए आरक्षित रहेगा….पिछड़ा वर्ग के लिए की गई सरकार की घोषणा कैसे लागू होगी, इसे लेकर भी तस्वीर अभी साफ होनी है। नगर निगम मुख्य रूप से गुड़गांव व बादशाहपुर विधानसभा क्षेत्रों में ही फैला हुआ है। बादशाहपुर का प्रतिनिधित्व राव नरबीर सिंह और गुड़गांव का प्रतिनिधित्व मुकेश शर्मा कर रहे हैं। पटौदी की विधायक बिमला चौधरी व सोहना के विधायक तेजपाल तंवर की भूमिका गौण रहेगी। पिछली बार के चुनाव में गुरुग्राम निगम में मेयर का पद अनुसूचित जाति की महिला के लिए आरक्षित था। इसी वजह से दावेदार यह मानकर चल रहे हैं कि इस बार सामान्य वर्ग की लाटरी ही खुलेगी। खैर, इस प्रश्न को अनुत्तरित छोड़कर आगे बढ़ते हैं। फिलहाल यहाँ पर भाजपा की ओर से जिन नेताओं के नामों की चर्चा चल रही है, उनमें गार्गी कक्कड़, यशपाल बत्रा, बोधराज सीकरी, विमल यादव, राकेश फाजिलपुरिया, कमल यादव, ऊषा प्रियदर्शी, कपिल दुवा व सुभाष सिंगला जैसे कई नाम शामिल हैं। विमल यादव जहां राव इंद्रजीत सिंह के करीबी हैं, जबकि राकेश की गिनती राव नरबीर सिंह के खास लोगों में होती है, लेकिन एनजेपी का अनुमान है कि गुरुग्राम नगर निगम के मेयर पद की टिकट व्यक्ति विशेष के समर्थक की बजाय संगठन के खाते में जाएगी। संगठन जिसे चाहेगा, उसे मैदान में उतारेगा। गुरुग्राम से वही चेहरा मैदान में आएगा, जो आरएसएस की विचारधारा के प्रति समर्पित होगा। विधायक, ब्रा्हमण समुदाय से होने के कारण किसी गैर ब्राह्मण पर पार्टी दाव लगाएगी। अधिक संभावना यही है कि भाजपा इस बार किसी पंजाबी या वैश्य समुदाय के चेहरे को मैदान में उतारेगी। कांग्रेस में टिकट के लिए मारामारी नहीं है। लोकसभा और इसके बाद विधानसभा में जिस तरह का दमदार प्रदर्शन भाजपा का रहा है, उसे देखते हुए वरिष्ठ कांग्रेसी नेता खुलकर दावेदारी से कतरा रहे हैं, लेकिन फिर भी कई नाम चर्चा में हैं। विधानसभा चुनाव में बादशाहपुर से कांग्रेस के उम्मीदवार रहे वर्धन यादव व टिकट के दूसरे गंभीर दावेदार पूर्व मंत्री राव धर्मपाल के बेटे वीरेंद्र यादव ने अभी रुचि नहीं दिखाई है, लेकिन इन दोनों के अलावा गुड़गांव से विधानसभा चुनाव लड़े मोहित ग्रोवर, टिकट के दावेदार रहे पंकज डावर, पूर्व मंत्री सुखबीर कटारिया के बेटे निशित कटारिया व गजे सिंह कबलाना के नाम चर्चा में चल पड़े हैं। आम आदमी पार्टी अभी थोड़ी दुविधा में है, लेकिन वरिष्ठ नेताओं के अकेले चुनाव लड़ने की घोषणा के बाद ऐसे मजबूत चेहरे की तलाश शुरू हो गई है, जो मेयर पद का चुनाव लड़ सके।

हरियाणा में नगर निगम चुनाव का बिगुल कभी भी बज सकता है। गुरुग्राम के लोगों को भी दो वर्ष से चुनाव का इंतजार है। हालांकि जब तक चुनाव प्रक्रिया शुरू नहीं होती, तब तक यह दावा करना सही नहीं होगा कि चुनाव फरवरी तक संपन्न हो ही जाएंगे, लेकिन पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के निर्देशों को देखते हुए चुनाव होने की संभावना प्रबल है। अभी मेयर पद के ड्रा को लेकर भी स्थिति स्पष्ट नहीं है। मेयर पद किस श्रेणी के लिए आरक्षित रहेगा….पिछड़ा वर्ग के लिए की गई सरकार की घोषणा कैसे लागू होगी, इसे लेकर भी तस्वीर अभी साफ होनी है।

नगर निगम मुख्य रूप से गुड़गांव व बादशाहपुर विधानसभा क्षेत्रों में ही फैला हुआ है। बादशाहपुर का प्रतिनिधित्व राव नरबीर सिंह और गुड़गांव का प्रतिनिधित्व मुकेश शर्मा कर रहे हैं। पटौदी की विधायक बिमला चौधरी व सोहना के विधायक तेजपाल तंवर की भूमिका गौण रहेगी। पिछली बार के चुनाव में गुरुग्राम निगम में मेयर का पद अनुसूचित जाति की महिला के लिए आरक्षित था। इसी वजह से दावेदार यह मानकर चल रहे हैं कि इस बार सामान्य वर्ग की लाटरी ही खुलेगी। खैर, इस प्रश्न को अनुत्तरित छोड़कर आगे बढ़ते हैं। फिलहाल यहाँ पर भाजपा की ओर से जिन नेताओं के नामों की चर्चा चल रही है, उनमें गार्गी कक्कड़, यशपाल बत्रा, बोधराज सीकरी, विमल यादव, राकेश फाजिलपुरिया, कमल यादव, ऊषा प्रियदर्शी, कपिल दुवा व सुभाष सिंगला जैसे कई नाम शामिल हैं। विमल यादव जहां राव इंद्रजीत सिंह के करीबी हैं, जबकि राकेश की गिनती राव नरबीर सिंह के खास लोगों में होती है, लेकिन एनजेपी का अनुमान है कि गुरुग्राम नगर निगम के मेयर पद की टिकट व्यक्ति विशेष के समर्थक की बजाय संगठन के खाते में जाएगी। संगठन जिसे चाहेगा, उसे मैदान में उतारेगा। गुरुग्राम से वही चेहरा मैदान में आएगा, जो आरएसएस की विचारधारा के प्रति समर्पित होगा। विधायक, ब्रा्हमण समुदाय से होने के कारण किसी गैर ब्राह्मण पर पार्टी दाव लगाएगी। अधिक संभावना यही है कि भाजपा इस बार किसी पंजाबी या वैश्य समुदाय के चेहरे को मैदान में उतारेगी।

कांग्रेस में टिकट के लिए मारामारी नहीं है। लोकसभा और इसके बाद विधानसभा में जिस तरह का दमदार प्रदर्शन भाजपा का रहा है, उसे देखते हुए वरिष्ठ कांग्रेसी नेता खुलकर दावेदारी से कतरा रहे हैं, लेकिन फिर भी कई नाम चर्चा में हैं। विधानसभा चुनाव में बादशाहपुर से कांग्रेस के उम्मीदवार रहे वर्धन यादव व टिकट के दूसरे गंभीर दावेदार पूर्व मंत्री राव धर्मपाल के बेटे वीरेंद्र यादव ने अभी रुचि नहीं दिखाई है, लेकिन इन दोनों के अलावा गुड़गांव से विधानसभा चुनाव लड़े मोहित ग्रोवर, टिकट के दावेदार रहे पंकज डावर, पूर्व मंत्री सुखबीर कटारिया के बेटे निशित कटारिया व गजे सिंह कबलाना के नाम चर्चा में चल पड़े हैं। आम आदमी पार्टी अभी थोड़ी दुविधा में है, लेकिन वरिष्ठ नेताओं के अकेले चुनाव लड़ने की घोषणा के बाद ऐसे मजबूत चेहरे की तलाश शुरू हो गई है, जो मेयर पद का चुनाव लड़ सके।