आंख दिखाकर भी विज ले रहे हैं सत्ता के ठाठ, हिम्मत है तो दे दीजिए विज के उठाए सवालों के जवाब

विधानसभा सत्र के दौरान कैबिनेट मंत्री अनिल विज ने भूपेंद्र सिंह हुड्डा के बहाने एक बार फिर खुद को नंबर टू बता दिया। मतलब वही पुरानी ठसक। जो लोग सोच रहे थे कि नगर निगम चुनावों के बाद अनिल विज के खिलाफ पार्टी उनके पुराने बयानों पर कुछ कार्रवाई करेगी, उन्हें संभवतया अब यह मान ही लेना चाहिए कि विज को भेजा नोटिस ठंडे बस्ते में जा चुका है। पार्टी ने विज को अनुशासनात्मक कार्यवाई के लिए नोटिस भेजा जरूर, मगर कार्रवाई की हिम्मत नहीं दिखा पाई। इसका मतलब है विज के निगम चुनाव से पूर्व दिए गए लंबे-चौड़े जवाब को देखकर पार्टी ने मौन साध लिया है। यह भी कह सकते हैं कि पार्टी को गब्बर को छेड़ने की बजाय गब्बर को शांत रखने में ही फायदा नजर आ रहा है। निगम चुनावों के बाद भी भाजपा की चुप्पी यही बता रही है। हम कह सकते हैं कि विज प्रादेशिक नेतृत्व को खुलेआम आंख दिखाकर भी सत्ता के ठाठ ले रहे हैं। पार्टी में अगर हिम्मत है तो विज के उठाए सवालों के जवाब सार्वजनिक कर सकती है, लेकिन विज का अंदाज नहीं बदलेगा। भाजपा ने अनिल विज को 10 फरवरी कारण बताओ नोटिस जारी करके यह पूछा था कि उन्होंने सीएम नायब सैनी और पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष मोहनलाल बड़ौली के खिलाफ बयानबाजी क्यों की। पार्टी ने दिल्ली में होने वाले विधानसभा चुनावों को देखते हुए विज के कदम को बेहद गंभीर माना था। इसी दिन राजस्थान के कैबिनेट मंत्री किरोड़ीलाल मीणा को भी नोटिस दिया गया था। सूत्रों के अनुसार पार्टी ने कार्रवाई के नाम पर बीच का रास्ता निकाला है। अनिल विज को सीएम व प्रदेशाध्यक्ष पर कटाक्ष करने से रोका है जबकि सीएम और बड़ौली को विज की आपत्तियों को दूर करने के लिए कहा है। इसका मतलब है अब उन चेहरों की भाजपा में एंट्री बिना विज की सहमति के नहीं होगी, जिन्हें विज अपने विधानसभा चुनाव में नुकसान करने के दोषी मानते हैं। वैसे यह बात उसी दिन तय हो गई थी कि विज के खिलाफ अब कोई कार्रवाई नहीं होगी, जिस दिन उन्होंने शोकॉज नोटिस का आठ पेज का जवाब दे दिया था। विज ने इसके बारे में अधिक कुछ नहीं कहा था, लेकिन बहुत कुछ छनकर बाहर आ गया था। विज ने पार्टी से ही यह सवाल पूछ लिया था कि आखिर कारण बताओ नोटिस मीडिया को लीक कैसे हुआ। संभवतया यही बात विज के पक्ष में रही। एक तरह से नोटिस लीक करना भी तो अनुशासनहीनता ही थी। अगर पार्टी इसे सार्वजनिक करती तो बात अलग थी, लेकिन पार्टी ने ऐसा नहीं किया था। विज ने मीडिया के सामने यह जरूर कहा था कि उन्हें तीन दिन का समय दिया गया था। उन्होंने समय पर जवाब दे दिया। उन्होंने यह भी कहा था कि हाईकमान को दिए जवाब को उन्होंने फाड़कर नष्ट कर दिया है। कागज की कतरन जेब में है। खैर, अब नोटिस और नोटिस के जवाब की बात पुरानी हो चुकी है। विज इसलिए नाराज थे क्योंकि पार्टी के अंदर विरोध के कारण उन्हें 2024 के चुनाव में कड़े मुकाबले में फंसना पड़ा था। चित्रा सरवारा ने उन्हें कड़ी टक्कर दी थी। विज का शक अपनी ही पार्टी के नेताओं पर था। विज ने और भी बहुत कुछ कहा था, लेकिन यह सब बातें अब अतीत का हिस्सा है। ताजा मामला केवल यही है कि विज, फिर अपने पुराने तेवर दिखाना शुरू कर चुके हैं और पार्टी ने अपने वरिष्ठ नेता के साथ तालमेल कायम कर लिया है। कारण बताओ नोटिस का जवाब उन्हीं नेताओं को सीख देने वाला रहा, जिन्हें विज के बयान चुभ रहे थे।

विधानसभा सत्र के दौरान कैबिनेट मंत्री अनिल विज ने भूपेंद्र सिंह हुड्डा के बहाने एक बार फिर खुद को नंबर टू बता दिया। मतलब वही पुरानी ठसक। जो लोग सोच रहे थे कि नगर निगम चुनावों के बाद अनिल विज के खिलाफ पार्टी उनके पुराने बयानों पर कुछ कार्रवाई करेगी, उन्हें संभवतया अब यह मान ही लेना चाहिए कि विज को भेजा नोटिस ठंडे बस्ते में जा चुका है। पार्टी ने विज को अनुशासनात्मक कार्यवाई के लिए नोटिस भेजा जरूर, मगर कार्रवाई की हिम्मत नहीं दिखा पाई। इसका मतलब है विज के निगम चुनाव से पूर्व दिए गए लंबे-चौड़े जवाब को देखकर पार्टी ने मौन साध लिया है। यह भी कह सकते हैं कि पार्टी को गब्बर को छेड़ने की बजाय गब्बर को शांत रखने में ही फायदा नजर आ रहा है। निगम चुनावों के बाद भी भाजपा की चुप्पी यही बता रही है। हम कह सकते हैं कि विज प्रादेशिक नेतृत्व को खुलेआम आंख दिखाकर भी सत्ता के ठाठ ले रहे हैं। पार्टी में अगर हिम्मत है तो विज के उठाए सवालों के जवाब सार्वजनिक कर सकती है, लेकिन विज का अंदाज नहीं बदलेगा।

भाजपा ने अनिल विज को 10 फरवरी कारण बताओ नोटिस जारी करके यह पूछा था कि उन्होंने सीएम नायब सैनी और पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष मोहनलाल बड़ौली के खिलाफ बयानबाजी क्यों की। पार्टी ने दिल्ली में होने वाले विधानसभा चुनावों को देखते हुए विज के कदम को बेहद गंभीर माना था। इसी दिन राजस्थान के कैबिनेट मंत्री किरोड़ीलाल मीणा को भी नोटिस दिया गया था।

सूत्रों के अनुसार पार्टी ने कार्रवाई के नाम पर बीच का रास्ता निकाला है। अनिल विज को सीएम व प्रदेशाध्यक्ष पर कटाक्ष करने से रोका है जबकि सीएम और बड़ौली को विज की आपत्तियों को दूर करने के लिए कहा है। इसका मतलब है अब उन चेहरों की भाजपा में एंट्री बिना विज की सहमति के नहीं होगी, जिन्हें विज अपने विधानसभा चुनाव में नुकसान करने के दोषी मानते हैं। वैसे यह बात उसी दिन तय हो गई थी कि विज के खिलाफ अब कोई कार्रवाई नहीं होगी, जिस दिन उन्होंने शोकॉज नोटिस का आठ पेज का जवाब दे दिया था। विज ने इसके बारे में अधिक कुछ नहीं कहा था, लेकिन बहुत कुछ छनकर बाहर आ गया था। विज ने पार्टी से ही यह सवाल पूछ लिया था कि आखिर कारण बताओ नोटिस मीडिया को लीक कैसे हुआ। संभवतया यही बात विज के पक्ष में रही। एक तरह से नोटिस लीक करना भी तो अनुशासनहीनता ही थी। अगर पार्टी इसे सार्वजनिक करती तो बात अलग थी, लेकिन पार्टी ने ऐसा नहीं किया था। विज ने मीडिया के सामने यह जरूर कहा था कि उन्हें तीन दिन का समय दिया गया था। उन्होंने समय पर जवाब दे दिया। उन्होंने यह भी कहा था कि हाईकमान को दिए जवाब को उन्होंने फाड़कर नष्ट कर दिया है। कागज की कतरन जेब में है। खैर, अब नोटिस और नोटिस के जवाब की बात पुरानी हो चुकी है।

विज इसलिए नाराज थे क्योंकि पार्टी के अंदर विरोध के कारण उन्हें 2024 के चुनाव में कड़े मुकाबले में फंसना पड़ा था। चित्रा सरवारा ने उन्हें कड़ी टक्कर दी थी। विज का शक अपनी ही पार्टी के नेताओं पर था। विज ने और भी बहुत कुछ कहा था, लेकिन यह सब बातें अब अतीत का हिस्सा है। ताजा मामला केवल यही है कि विज, फिर अपने पुराने तेवर दिखाना शुरू कर चुके हैं और पार्टी ने अपने वरिष्ठ नेता के साथ तालमेल कायम कर लिया है। कारण बताओ नोटिस का जवाब उन्हीं नेताओं को सीख देने वाला रहा, जिन्हें विज के बयान चुभ रहे थे।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *