हरियाणा में खाली हुई राज्यसभा की एक सीट पर बीजेपी रेल राज्यमंत्री रवनीत बिट्टू या फिर बंतों कटारिया पर दांव लगा सकती है। संभावनाएं ज्यादा किसी महिला नेत्री की लग रही है। अगर भाजपा तीन महीने बाद होने वाले विधानसभा चुनाव को देखते हुए जातीय संतुलन साधने निकली तो फिर दावेदारी में अग्रणी पंक्ति में किसी एससी वर्ग की महिला हो सकती है।
रवनीत बिट्टू पंजाब से आते हैं। बिट्टू को बीजेपी ने लुधियाना सीट से लोकसभा का चुनाव लड़ाया था। लेकिन उन्हें कांग्रेस के राजा वड़िंग ने हरा दिया। बावजूद इसके सिख चेहरा होने के कारण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें अपने मंत्रीमंडल में शामिल किया। उन्हें 6 महीने के भीतर सदन का सदस्य चुनना जरूरी है। ऐसे में बिट्टू के हरियाणा से राज्यसभा भेजे जाने की संभावनाएं ज्यादा है। इसके पीछे का बड़ा कारण हरियाणा में होने वाले विधानसभा चुनाव हैं। पंजाब के साथ लगती बेल्ट में बड़ी संख्या में सिख हैं। ऐसे में ये सिख वोटर्स को साधने की प्लानिंग हो सकती हैं। क्योंकि लोकसभा चुनाव में सिख वोटर्स ने बीजेपी के खिलाफ वोट की। ऐसे में बिट्टू के साहरे भाजपा वोट साधने का प्रयास करेगी।
वहीं दूसरी तरफ बीजेपी में फिलहाल हरियाणा की 3 महिला नेता राज्यसभा सीट की प्रबल दावेदार मानी जा रही हैं। इनमें एक जाट चेहरा और 2 एससी वर्ग से हैं। भाजपा सूत्रों के मुताबिक फिलहाल इन चेहरों में सबसे टॉप पर बंतो कटारिया का नाम चल रहा है। बंतो कटारिया अंबाला के सांसद रहे रतन लाल कटारिया की पत्नी हैं। रतनलाल कटारिया के निधन के बाद बीजेपी ने उन्हें अंबाला से उम्मीद्वार भी बनाया, लेकिन वह कांग्रेस के वरूण मुलाना से चुनाव हार गए। दूसरे नंबर पर सुनीता दुग्गल हैं। सुनीता सिरसा से सांसद रह चुकी हैं। तीसरे नंबर पर कांग्रेस से भाजपा में आईं भिवानी के तोशाम की विधायक किरण चौधरी हैं।
तीनों महिला नेताओं की दावेदारी की वजह
- बंतो कटारिया
बंतो कटारिया एससी चेहरा हैं। उनके पति रतन लाल कटारिया पीएम नरेंद्र मोदी के करीबी रह चुके हैं। इसी वजह से उन्हें इस लोकसभा चुनाव में अंबाला रिजर्व सीट से टिकट भी मिला। हालांकि वे कांग्रेस के विधायक वरूण मुलाना से चुनाव हार गईं। पूर्व CM मनोहर लाल खट्टर भी बंतो कटारिया को राज्यसभा भेजे जाने के हक में बताए जा रहे हैं। खासकर भाजपा जिस तरह से 30 सीटों वाले जीटी रोड बेल्ट को साधने में जुटी है, उसमें इसी बेल्ट में आते जिले अंबाला की बंतो कटारिया फिट बैठती हैं। - सुनीता दुग्गल
सुनीता सिरसा से सांसद थी। इसके बावजूद BJP ने उनकी टिकट काटकर AAP से आए पूर्व कांग्रेसी अशोक तंवर को टिकट दे दी। हालांकि वह कुमारी सैलजा के खिलाफ हार गए। दुग्गल ने इस दौरान कोई बगावती तेवर नहीं दिखाए। सुनीता को इसका फायदा मिल सकता है।
हालांकि उनकी दावेदारी में कुछ पेंच भी हैं। जिनमें सिरसा-फतेहाबाद एरिया से पहले ही जाट चेहरे सुभाष बराला को राज्यसभा भेजा गया है। खट्टर से भी उनके सियासी रिश्ते ठीक नहीं बताए जाते। इतना जरूर है कि बंतो कटारिया के बजाए कोई दूसरी महिला एससी चेहरे की जरूरत हो तो सुनीता दुग्गल को फायदा मिल सकता है।
- किरण चौधरी
पूर्व मुख्यमंत्री चौधरी बंसीलाल की पुत्रवधु किरण चौधरी को केंद्रीय मंत्री मनोहर लाल खट्टर का करीबी माना जाता है। उन्होंने डेढ़ महीने पहले ही कांग्रेस छोड़कर भाजपा जॉइन की। हालांकि इसके बदले उन्हें BJP से अभी कुछ मिला नहीं है। ऐसे में अगर जाट महिला चेहरे को राज्यसभा भेजना हो तो किरण हो सकती हैं। हालांकि अगर किरण विधानसभा लड़ेंगी तो उनकी बेटी श्रुति चौधरी भी इसकी दावेदार हैं।
किरण चौधरी का एक प्लस पॉइंट यह भी है कि वे भिवानी एरिया से आती हैं। इस एरिया में बीजेपी की तरफ से अभी तक कोई बड़ी नियुक्ति नहीं दी गई हैं। किरण चौधरी के जरिए भाजपा भिवानी के साथ लगते दक्षिणी हरियाणा को भी साध सकती है।
राज्यसभा में बीजेपी की जीत पक्की
हरियाणा विधानसभा में कुल 90 सीटें है। इनमें एक निर्दलीय विधायक राकेश दौलताबाद के निधन और वरूण चौधरी के सांसद चुने जाने के बाद दो सीटें खाली हो गई है। वर्तमान में विधानसभा में 88 विधायक हैं, जिससे बहुमत का आंकड़ा अब 46 से गिरकर 44 पर आ गया है। बीजेपी के पास 41, एक निर्दलीय और एक हलोपा विधायक गोपाल कांडा का समर्थन हैं। कांग्रेस के पास 28, जेजेपी के पास 10, चार निर्दलीय और एक इनेलो का विधायक हैं। ऐसी स्थिति में बीजेपी कैंडिडेट का राज्यसभा में जाना लगभग तय है।
कुलदीप, धनखड़, अभिमन्यु भी दावेदारों में
रोहतक से दीपेंद्र हुड्डा के लोकसभा चुनाव जीतने के बाद हरियाणा में यह 5वीं राज्यसभा सीट खाली हुई है। इसके लिए कई और नेता भी लॉबिंग में जुटे हैं। जिसमें सबसे बड़ा नाम पूर्व सीएम भजनलाल के बेटे कुलदीप बिश्नोई का है। जिन्हें न तो भाजपा ने हिसार से लोकसभा टिकट दी और न ही उनके विधायक बेटे भव्य बिश्नोई को मंत्री बनाया। हालांकि हिसार से वह भाजपा उम्मीदवार रणजीत चौटाला को नहीं जिता पाए। इससे उनका दावा कमजोर है। भाजपा के पुराने नेता पूर्व मंत्री कैप्टन अभिमन्यु की भी दावेदारी मानी जा रही है। इसके अलावा पूर्व प्रदेशाध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ भी इस सूची में शामिल है।
चुनावी नतीजों ने बदली बीजेपी की रणनीति
दो माह पहले जून में संपन्न हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी को हरियाणा में 10 में से 5 सीटों पर हार मिली। 2019 के चुनाव में बीजेपी ने सभी 10 लोकसभा सीटें जीती थी। इसकी समीक्षा हुई तो पता चला कि भाजपा की गैर जाट पॉलिटिक्स की वजह से जाट पहले ही नाराज थे। इस लोकसभा चुनाव में एससी वर्ग भी भाजपा के खिलाफ गया। यही वजह है कि भाजपा को अंबाला और सिरसा, दोनों रिजर्व सीट पर हार मिली।
भाजपा ने डॉ. सतीश पुनिया को प्रदेश प्रभारी बना जाटों को साध लिया। CM नायब सैनी के जरिए OBC और मोहन बड़ौली को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर ब्राह्मण वोटरों को साधने की कोशिश की जा चुकी है। हालांकि एससी वर्ग से फौरी तौर पर कोई बड़ा चेहरा नहीं है। ऐसे में विधानसभा चुनाव से पहले एससी पर दांव खेलना भाजपा की जरूरत से ज्यादा मजबूरी मानी जा रही है।