क्या स्टालिन विपक्षी राजनीति में नई लकीर खींच रहे हैं?

🔹वक्फ बिल के खिलाफ विधानसभा में प्रस्ताव, केंद्र सरकार पर गंभीर आरोप

🔹तमिलनाडु से निकलकर राष्ट्रीय राजनीति में स्टालिन का बढ़ता कद

🔹 2024 लोकसभा चुनाव में बड़ी जीत के बाद विपक्षी एकता के लिए आक्रामक रणनीति

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नई दिल्ली। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन लगातार केंद्र सरकार के फैसलों के खिलाफ मुखर रहे हैं। गुरुवार को तमिलनाडु विधानसभा में उन्होंने वक्फ संशोधन विधेयक को मुस्लिम समुदाय के धार्मिक और संपत्ति अधिकारों पर हमला करार दिया। डीएमके ने विधानसभा में एक प्रस्ताव पारित कर केंद्र से इसे वापस लेने की मांग की। स्टालिन ने आरोप लगाया कि यह विधेयक वक्फ बोर्ड की स्वायत्तता खत्म कर सरकारी हस्तक्षेप बढ़ाने का प्रयास है।

स्टालिन ने इसे संविधान के अनुच्छेद 26 (धार्मिक स्वतंत्रता) का उल्लंघन बताया और बीजेपी की अल्पसंख्यक विरोधी नीति करार दिया। इस प्रस्ताव का एआईएडीएमके समेत तमिलनाडु की अन्य पार्टियों ने समर्थन किया, जबकि बीजेपी के विधायकों ने वॉकआउट किया।

क्या स्टालिन विपक्ष के नए नेता बनने की कोशिश कर रहे हैं?

स्टालिन की केंद्र विरोधी राजनीति केवल तमिलनाडु तक सीमित नहीं है। वे राष्ट्रीय स्तर पर विपक्षी दलों की अगुवाई करने की दिशा में बढ़ते दिख रहे हैं। 2024 के लोकसभा चुनाव में डीएमके ने तमिलनाडु की सभी 39 सीटें जीतकर विपक्षी गठबंधन INDIA को मजबूती दी। इसके बाद से स्टालिन का कद विपक्षी राजनीति में और बढ़ा है।

स्टालिन लगातार केंद्र के फैसलों के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं, जिससे उनकी छवि राष्ट्रीय स्तर पर एक मजबूत विपक्षी नेता के रूप में उभर रही है। उनके नेतृत्व में डीएमके ने न केवल तमिलनाडु में अपनी पकड़ मजबूत की है, बल्कि राष्ट्रीय राजनीति में भी अपनी भूमिका बढ़ाई है।

केंद्र के खिलाफ स्टालिन के प्रमुख मुद्दे

🔹 CAA का विरोध:  स्टालिन ने नागरिकता संशोधन कानून (CAA) को मुस्लिमों और श्रीलंकाई तमिल शरणार्थियों के खिलाफ बताया। 2020 में उन्होंने इसके खिलाफ बड़े पैमाने पर प्रदर्शन किए।

🔹 हिंदी थोपने का मुद्दा: स्टालिन ने केंद्र सरकार पर हिंदी को गैर-हिंदी भाषी राज्यों पर थोपने का आरोप लगाया। 2022 में उन्होंने इसे “भाषाई साम्राज्यवाद” बताया और तमिल भाषा और संस्कृति की रक्षा का संकल्प लिया।

🔹 वित्तीय भेदभाव का आरोप: स्टालिन ने केंद्र पर आरोप लगाया कि वह गैर-बीजेपी शासित राज्यों को वित्तीय रूप से कमजोर कर रहा है। फरवरी 2024 में उन्होंने दिल्ली में “दक्षिण राज्यों के साथ आर्थिक भेदभाव” के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया।

🔹 NEET और राष्ट्रीय शिक्षा नीति: स्टालिन NEET के सख्त विरोध में रहे हैं और इसे सामाजिक न्याय के खिलाफ बताया। तमिलनाडु विधानसभा ने 2021 में इसे हटाने का प्रस्ताव पारित किया था।

🔹 मणिपुर हिंसा पर केंद्र की चुप्पी:  2024 में स्टालिन ने मणिपुर हिंसा को लेकर केंद्र की निष्क्रियता की आलोचना की और विपक्षी दलों से एकजुट होने की अपील की।

🔹 वन नेशन,  वन इलेक्शन का विरोध:  स्टालिन ने इसे संघीय ढांचे के खिलाफ बताया और कहा कि यह क्षेत्रीय पार्टियों की राजनीति को कमजोर करने की साजिश है।

क्या स्टालिन कांग्रेस की जगह लेंगे?

स्टालिन की बढ़ती सक्रियता के बीच यह सवाल उठ रहा है कि क्या वे कांग्रेस के कमजोर पड़ते प्रभाव के बीच विपक्ष का नया चेहरा बन सकते हैं? उन्होंने विपक्षी गठबंधन INDIA को मजबूती देने में अहम भूमिका निभाई और लगातार ऐसे मुद्दे उठा रहे हैं, जिनसे उन्हें राष्ट्रीय पहचान मिल रही है।

ग़ौरतलब है कि तमिलनाडु के बाहर भी स्टालिन की स्वीकार्यता बढ़ रही है, खासकर अल्पसंख्यकों, दक्षिण भारत और पिछड़े वर्गों के बीच। अगर वे इसी रणनीति पर आगे बढ़ते रहे, तो 2029 के आम चुनावों तक वे एक मजबूत विपक्षी नेता के रूप में स्थापित हो सकते हैं। 

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