क्या हम कहेंगे एक थी जजपा?
क्या इनेलो का बचेगा अस्तित्व?
क्या करेंगे हुड्डा, अभय व दुष्यंत?
एक दिन पूर्व 25 मार्च को ही इनेलो ने अपनी नई टीम की घोषणा की है। उम्मीद के अनुरूप अस्तित्व बचाने के लिए संघर्ष कर रही पार्टी में पावर सेंटर के रूप में उभरे अभय सिंह चौटाला को ही राष्ट्रीय अध्यक्ष की बागडोर सौंपी गई है। अभय का छह राज्यों में प्रदेशाध्यक्ष बनाने का मतलब है-अभी चौटाला ने हथियार नहीं डाले हैं। ओमप्रकाश चौटाला चले गए तो अभय चौटाला आ गए हैं। किसान विशेषरूप से जाट राजनीति में आए शून्य को भरने के लिए भूपेंद्र सिंह हुड्डा चेहरा होंगे या कोई नया चेहरा आगे आएगा। अभय सिंह चौटाला जाट-किसान की राजनीति के चेहरे होंगे या दुष्यंत चौटाला फिर से सर्वाइव करेंगे।
कल 25 मार्च को ही इनेलो ने अपनी नई टीम गठित की है। इस टीम में अधिकांश चेहरे पुराने हैं, लेकिन अभय चौटाला ने सात राज्यों में प्रदेशाध्यक्ष नियुक्त करके यह बता दिया है कि वह हथियार नहीं डाल रहे हैं। सत्ता के लिए कड़ा संघर्ष होगा। वह सड़कों पर उतरकर संघर्ष करेंगे। अभय चौटाला, इनेलो को इतना ताकतवर बनाने का प्रयास जरूर करेंगे कि किंग नहीं तो जजपा की तरह किंगमेकर बन जाएं। राजनीति में प्रासंगिकता बनी रहेगी। एनडीए न सही, इंडिया गठबंधन में तो पूछ हो ही जाए। रामपाल माजरा को फिर से हरियाणा की बागडोर सौंपी गई है। उन्हें प्रदेशाध्यक्ष बनाया गया है। इसके अलावा समरपाल चौधरी को उत्तर प्रदेश, मोतीलाल को मध्यप्रदेश, जयवीर गोदारा को राजस्थान, हरी सिंह राणा को दिल्ली, गुरतेग सिंह गिक्कू को पंजाब व डॉ. वीरेंद्र पहल को हिमाचल प्रदेश का अध्यक्ष बनाया गया है।
जजपा के सामने अस्तित्व की चुनौती है। इस बार शून्य पर आउट होना जजपा के लिए सदमे से कम नहीं है। जिस दुष्यंत चौटाला की फूंक से घास जलती थी, वह खुद चुनाव हार गए। इसके पीछे जजपा के शीर्ष नेतृत्व की अपरिपक्वता रही है। वह समय पर फैसला लेने की बजाय कुर्सी से तब तक चिपके रहे, जब तक की उन्हें हटा नहीं दिया गया। जजपा से बड़ी चूक हुई राजस्थान में चुनाव लड़ने की। वहां जैसा परिणाम मिला, उसने भाजपा को बता दिया कि इनकी दुकान में सामान नहीं है। जजपा नेताओं के सामने एक रास्ता तो यह है कि बिना शर्त इनेलो में शामिल हो जाएं, लेकिन इसकी संभावना कम है। जजपा की ओर से चुनाव आयोग से इनेलो का चुनाव चिह्न जब्त करने की मांग की जा रही है। हमारा निष्कर्ष यह है कि बिना चमत्कार अब जजपा के उदय होने की संभावना कम है। कम से कम इस बार तो बिल्कुल भी नहीं। हां, जजपा नेताओं के सामने इनेलो में शामिल होकर हरियाणा में इनेलो को तीसरी शक्ति बनाने का विकल्प बचा हुआ है, लेकिन इसकी संभावना न के बराबर है। दुष्यंत व दिग्विजय युवा हैं। उनकी राजनीति न केवल उभरेगी बल्कि चमकेगी भी, लेकिन इस बार तो इसका सपना लेना छोड़ ही दें। जजपा तभी जिंदा हो पाएगी, जब इसके नेता एक आइडियोलॉजी के साथ जनता के बीच पहुंचेंगे।
भूपेंद्र हुड्डा की सबसे बड़ी ताकत थी उनकी अपनी जाति पर पकड़ और 2009 में उनकी अपनी सरकार में साथ रहे अधिकांश चेहरों से याराना बरकरार रहना। अब दोनों मामलों में शिथिलता आई है। उम्र का असर हुड्डा के चेहरे पर नजर आने लगा है, लेकिन दीपेंद्र सिंह हुड्डा की राजनीति भविष्य में चमक सकती है। हुड्डा शायद ही कांग्रेस से बाहर आकर राजनीति करें, क्योंकि वह अतीत में चौ. बंसीलाल व भजनलाल का हश्र देख चुके हैं। हां, कांग्रेस ने अगर उन्हें विधायक दल का नेता बनाया और हुड्डा ने भी खुद को कांग्रेस का वरिष्ठ कार्यकर्ता मानकर बनने वाले प्रदेशाध्यक्ष को सहयोग किया तो कांग्रेस के दिन भी बदलेंगे और हुड्डा के दिन भी बदलेंगे, लेकिन इसके लिए हुड्डा को अपने लिए व बेटे के लिए उस कुर्सी को नमस्कार कहना होगा। जिस दिन हुड्डा कुर्सी को नमस्कार करेंगे, उसी दिन कुर्सी उनके पास आनी शुरू हो जाएगी। अगर हम इस सवाल का जवाब तलाशने का प्रयास करें कि भविष्य में हुड्डा, अभय चौटाला व दुष्यंत की राजनीति क्या होगी तो उनके राजनीतिक दलों के विश्लेषण में इसका जवाब आ चुका है। आने वाले समय में किसान विशेषकर जाट समुदाय की राजनीति पर कब्जा जमाने के लिए तीनों नेताओं के बीच कड़ा संघर्ष होगा। कांग्रेस ने अगर भूपेंद्र हुड्डा का सम्मान दिया तो जाट समाज उनके साथ डटा रह सकता है। इनेलो व जजपा में चौ. देवीलाल की विरासत की जंग जारी रहेगी, लेकिन जिस दिन अभय चौटाला के सिर पर सामाजिक पगड़ी बंधी थी, उसी दिन ओमप्रकाश चौटाला की विरासत अभय चौटाला के पास आ चुकी है। दुष्यंत चौटाला चाहें तो चाचा की इस पगड़ी की चमक बढ़ा सकते हैं। अगर वह ऐसा नहीं करेंगे तो किसान-जाट की राजनीति में वोटों का बंटवारा होगा और इसका सीधा लाभ भाजपा को मिलेगा।