दादरी और बाढ़ड़ा विधानसभा क्षेत्रों में जाति और गोत्र के समीकरण चुनावी राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. यहां सभी प्रमुख राजनीतिक दलों के साथ-साथ कुछ निर्दलीय प्रत्याशी भी जाति के आधार पर रणनीति बनाने में जुटे हैं. हालांकि, चुनावी भाषणों में सद्भावना और भाईचारे की बातें की जाती हैं, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है.
जाटों का वर्चस्व
बाढ़ड़ा क्षेत्र पूरी तरह से ग्रामीण है, जहां जाट मतदाता लगभग 54 प्रतिशत हैं. वहीं, दादरी विधानसभा क्षेत्र में जाटों की संख्या करीब 35 प्रतिशत है, जहां गैर-जाटों की भी अच्छी खासी तादाद है. पिछले चुनावों में, दादरी से चुनाव जीतने वाले सभी प्रत्याशी जाट समुदाय से रहे हैं, लेकिन दादरी शहर में गैर-जाटों की उपस्थिति इसे एक जटिल चुनावी क्षेत्र बनाती है.
प्रमुख गोत्रों की भूमिका
दादरी और बाढ़ड़ा दोनों हलकों में जाट समुदाय में मुख्य रूप से सांगवान, श्योराण और फोगाट गोत्र के मतदाता महत्वपूर्ण हैं. सांगवान खाप चालीस के तहत आने वाले गांवों का बड़ा हिस्सा इन दोनों हलकों में है. श्योराण खाप बाढ़ड़ा में विशेष प्रभावी है, जहां श्योराण गोत्र के मतदाताओं की संख्या भी अच्छी है.
गैर-जाटों की महत्ता
गैर-जाट मतदाता भी चुनाव परिणामों में अहम भूमिका निभाते हैं. दादरी में हर चुनाव में गैर-जाटों ने प्रतिनिधित्व की मांग की है. हालांकि, मुख्य दल जाटों के वर्चस्व को देखते हुए गैर-जाटों को उम्मीदवार बनाने में हिचकिचाते हैं. जातीय समीकरणों की पकड़ इतनी मजबूत है कि यह चुनावों के परिणामों को प्रभावित करती है.
चुनावी परिदृश्य
कुछ चुनावों में ऐसा भी देखा गया है कि जब किसी विशेष पार्टी या नेता की लहर होती है, तब जातीय गणित का असर कम हो जाता है. लेकिन ऐसे मामले बेहद कम होते हैं. राजनीतिक दल जातीय समीकरणों के आधार पर अपने उम्मीदवारों को चुनते हैं, जिससे चुनावी माहौल और भी जटिल हो जाता है.
गौरतलब है कि दादरी का यह जाति आधारित गणित न केवल चुनावी रणनीतियों को प्रभावित करता है, बल्कि क्षेत्र की राजनीतिक स्थिति को भी आकार देता है. जाति और गोत्र के समीकरणों के चलते दादरी और बाढ़ड़ा में चुनावी लड़ाई और भी दिलचस्प बन जाती है.