भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टियों के असंतुष्ट नेता खड़ी कर रहे हैं चुनौती, रूठने-मनाने का सिलसिला जारी

भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टियों के असंतुष्ट नेता खड़ी कर रहे हैं चुनौती, रूठने-मनाने का सिलसिला जारी हरियाणा विधानसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस दोनों दलों को असंतुष्ट नेताओं से बड़ी चुनौती मिल रही है। जिन उम्मीदवारों को टिकट नहीं मिला, वे निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनावी मैदान में उतरे हैं। असंतुष्ट नेता दोनों पार्टियों के लिए बड़ी परेशानी खड़ी कर रहे हैं। सावित्री जिंदल का चुनावी मैदान हरियाणा की राजनीति में एक प्रमुख चेहरा सावित्री जिंदल हैं, जो एशिया की सबसे अमीर महिला और ओपी जिंदल समूह की अध्यक्ष हैं। वे हिसार से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ रही हैं। जिंदल ने कहा कि यह उनका अंतिम चुनाव है और वे जनता की सेवा के लिए पूरी तरह से समर्पित हैं। सावित्री जिंदल 2005 और 2009 में कांग्रेस की विधायक रही हैं और 2013 में मंत्री भी रहीं। जब उनसे सवाल किया गया कि वे भाजपा के सांसद के बेटे की मां होने के बावजूद निर्दलीय चुनाव क्यों लड़ रही हैं, तो उन्होंने कहा कि वे कभी भाजपा में शामिल नहीं हुईं। भाजपा के असंतुष्ट नेता भाजपा के लिए भी स्थिति गंभीर है। कई नेता, जैसे पूर्व विद्युत मंत्री रणजीत सिंह चौटाला, टिकट न मिलने के बाद फिर से निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं। चौटाला ने टिकट नहीं मिलने पर मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। इसके अलावा, देवेंद्र कादियान, राम शर्मा, दीपक डागर, कहर सिंह रावत, जसबीर देसवाल और कल्याण चौहान जैसे अन्य नेता भी पार्टी के लिए परेशानी खड़ी कर रहे हैं। कांग्रेस की मुश्किलें कांग्रेस की स्थिति और भी कठिन है। कांग्रेस में पार्टी के असंतुष्ट नेताओं की संख्या काफी अधिक है। हरियाणा के 20 निर्वाचन क्षेत्रों में 29 असंतुष्ट उम्मीदवार कांग्रेस प्रत्याशियों के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं। इनमें से कुछ प्रमुख चेहरे निर्मल सिंह की बेटी चित्रा सरवारा हैं, जो अंबाला छावनी से निर्दलीय चुनाव लड़ रही हैं। उनके मुकाबले भाजपा के अनिल विज और कांग्रेस के परविंदर सिंह परी जैसे अनुभवी नेता हैं। भाजपा और कांग्रेस की रणनीतियां भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टियां असंतुष्ट नेताओं को मनाने की कोशिश कर रही हैं, लेकिन इसके बावजूद बड़ी संख्या में नेता पार्टी के आधिकारिक उम्मीदवारों के खिलाफ चुनाव लड़ने पर मजबूर हैं। भाजपा के व्यापार प्रकोष्ठ के पूर्व संयोजक नवीन गोयल ने भी पार्टी छोड़कर निर्दलीय चुनाव लड़ने का फैसला लिया। उनका कहना है कि पार्टी के कुछ नेता टिकट न मिलने के कारण नाराज हैं, जो चुनाव में भाजपा की स्थिति पर असर डाल सकता है। गौरतलब है कि हरियाणा विधानसभा चुनाव में असंतुष्ट नेताओं का बढ़ता प्रभाव दोनों प्रमुख पार्टियों के लिए एक गंभीर चुनौती बन गया है। निर्दलीय उम्मीदवारों की संख्या बढ़ने से चुनावी परिणामों पर गहरा असर पड़ सकता है। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या भाजपा और कांग्रेस इन चुनौतियों का सामना कर पाएंगी या ये असंतुष्ट नेता चुनावी खेल को बदल देंगे।

हरियाणा विधानसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस दोनों दलों को असंतुष्ट नेताओं से बड़ी चुनौती मिल रही है। जिन उम्मीदवारों को टिकट नहीं मिला, वे निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनावी मैदान में उतरे हैं। असंतुष्ट नेता दोनों पार्टियों के लिए बड़ी परेशानी खड़ी कर रहे हैं।

सावित्री जिंदल का चुनावी मैदान

हरियाणा की राजनीति में एक प्रमुख चेहरा सावित्री जिंदल हैं, जो एशिया की सबसे अमीर महिला और ओपी जिंदल समूह की अध्यक्ष हैं। वे हिसार से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ रही हैं। जिंदल ने कहा कि यह उनका अंतिम चुनाव है और वे जनता की सेवा के लिए पूरी तरह से समर्पित हैं। सावित्री जिंदल 2005 और 2009 में कांग्रेस की विधायक रही हैं और 2013 में मंत्री भी रहीं। जब उनसे सवाल किया गया कि वे भाजपा के सांसद के बेटे की मां होने के बावजूद निर्दलीय चुनाव क्यों लड़ रही हैं, तो उन्होंने कहा कि वे कभी भाजपा में शामिल नहीं हुईं।

भाजपा के असंतुष्ट नेता

भाजपा के लिए भी स्थिति गंभीर है। कई नेता, जैसे पूर्व विद्युत मंत्री रणजीत सिंह चौटाला, टिकट न मिलने के बाद फिर से निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं। चौटाला ने टिकट नहीं मिलने पर मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। इसके अलावा, देवेंद्र कादियान, राम शर्मा, दीपक डागर, कहर सिंह रावत, जसबीर देसवाल और कल्याण चौहान जैसे अन्य नेता भी पार्टी के लिए परेशानी खड़ी कर रहे हैं।

कांग्रेस की मुश्किलें

कांग्रेस की स्थिति और भी कठिन है। कांग्रेस में पार्टी के असंतुष्ट नेताओं की संख्या काफी अधिक है। हरियाणा के 20 निर्वाचन क्षेत्रों में 29 असंतुष्ट उम्मीदवार कांग्रेस प्रत्याशियों के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं। इनमें से कुछ प्रमुख चेहरे निर्मल सिंह की बेटी चित्रा सरवारा हैं, जो अंबाला छावनी से निर्दलीय चुनाव लड़ रही हैं। उनके मुकाबले भाजपा के अनिल विज और कांग्रेस के परविंदर सिंह परी जैसे अनुभवी नेता हैं।

भाजपा और कांग्रेस की रणनीतियां

भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टियां असंतुष्ट नेताओं को मनाने की कोशिश कर रही हैं, लेकिन इसके बावजूद बड़ी संख्या में नेता पार्टी के आधिकारिक उम्मीदवारों के खिलाफ चुनाव लड़ने पर मजबूर हैं। भाजपा के व्यापार प्रकोष्ठ के पूर्व संयोजक नवीन गोयल ने भी पार्टी छोड़कर निर्दलीय चुनाव लड़ने का फैसला लिया। उनका कहना है कि पार्टी के कुछ नेता टिकट न मिलने के कारण नाराज हैं, जो चुनाव में भाजपा की स्थिति पर असर डाल सकता है।

गौरतलब है कि हरियाणा विधानसभा चुनाव में असंतुष्ट नेताओं का बढ़ता प्रभाव दोनों प्रमुख पार्टियों के लिए एक गंभीर चुनौती बन गया है। निर्दलीय उम्मीदवारों की संख्या बढ़ने से चुनावी परिणामों पर गहरा असर पड़ सकता है। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या भाजपा और कांग्रेस इन चुनौतियों का सामना कर पाएंगी या ये असंतुष्ट नेता चुनावी खेल को बदल देंगे।