भाजपा दलित विरोधी मानसिकता की शिकार है। केंद्र व प्रदेश की भाजपा सरकार आरक्षण को समाप्त करने की दिशा में लगातार काम कर रही है। लेकिन कांग्रेस पार्टी बाबा साहेबा डॉ. बी. आर. अंबेडकर द्वारा दिए गए आरक्षण की रक्षा के लिए लगातार संघर्ष करती रहेगी। यह बात अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की राष्ट्रीय महासचिव, उत्तराखंड की प्रभारी, पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं सांसद कुमारी सैलजा ने जारी एक बयान में कही है।
सांसद सैलजा ने कहा कि अभी भाजपा द्वारा लैटरल इंट्री में आरक्षण समाप्ति के प्रकरण के बाद अब कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा विभाग के पदों के विज्ञापन में भी साफ तौर पर आरक्षण पर डाका डाला जा रहा है। संविधान की हत्या करने पर तुली दलित विरोधी भाजपा के चेहरे से रोज परत दर परत उतर रही है। आरक्षण को लेकर भाजपा की मंशा ठीक नहीं है। यह आरक्षण खत्म करने की शुरुआत है क्योंकि इस लेटरल एंट्री में आरक्षण का कोई प्रावधान नहीं रखा गया था। सरकार का मानना था कि यह खुली भर्ती है, इसलिए कोई भी इन पदों के लिए अप्लाई कर सकता है। लाख टके का सवाल है कि जहां आरक्षण नहीं है वहां अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति व पिछड़ा वर्ग के कितने लोगों की एंट्री होती है। भारतीय सेना, अर्ध सैनिक बलों व खेल के क्षेत्र में आरक्षण नहीं है वहां आरक्षित वर्ग के लोगों की एंट्री ना के बराबर है। क्या आरक्षित वर्ग के लोग काबिल नहीं हैं। भारतीय संविधान की धारा 341 में निहित कार्मिक सेवा एक्ट 1968 के तहत 45 दिन से अधिक दिन की सरकारी सेवा वाले पदों पर आरक्षण का प्रावधान किये जाने का प्रावधान है, जबकि लेटरल एंट्री में तीन या पांच साल की अवधि रखी गई थी। इतना ही नहीं उनकी सेवाओं के लिए डेपुटेशन बढ़ाया भी जा सकता है। केंद्र सरकार द्वारा प्रशासनिक सुधारों की आड़ में इस तरह का फैसला लेना कितना न्यायोचित है। यह सरकार की मंशा पर प्रश्न खड़े करता है। इससे पहले भी 2018 में 63 जॉइंट सेक्रेटरी स्तर के अधिकारियों की बिना किसी परीक्षा के भरती की गई थी। इनमें भी आरक्षण का प्रावधान नहीं था। इनमें से 35 अधिकारी निजी क्षेत्र से आए और इस समय 57 अधिकारी विभिन्न विभागों में काम कर रहे हैं। सरकार द्वारा इस तरह से विभिन्न क्षेत्रों में बैक-डोर एंट्री करवाया जाना संविधान में प्रदत्त आरक्षण से छेड़छाड़ है। इतना ही नहीं संघ लोक सेवा आयोग द्वारा इंजीनियरिंग, कम्युनिकेशन, सूचना व अकाउंट्स सेवाओं सहित अन्य सेवाओं की डायरेक्ट भर्ती होती है। इस प्रकार से एक्सपर्ट अधिकारियों की नियुक्तियां की जाती हैं। इस सब के बावजूद फिर निजी क्षेत्र से विशेषज्ञों की भर्ती के लिए लेटरल एंट्री की क्या आवश्यकता पड़ी थी। सरकार के इस फैसले ने अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति व पिछड़ा वर्ग के लोगों के मन में सवाल खड़े किए हैं, जिससे असमंजस की स्थिति पैदा हुई है।
सांसद कुमारी सैलजा ने कहा कि हरियाणा सरकार भी आरक्षण को समाप्त करने की तुली हुई है। प्रदेश में हरियाणा कौशल विकास निगम के तहत जो भर्तियां की गई थीं, उनमें भी आरक्षण का प्रावधान नहीं रखा।