चाय की प्याली से राजनीति में उबाल ला रहे हैं सतीश यादव

चाय की प्याली से राजनीति में उबाल ला रहे हैं सतीश यादव

रेवाड़ी विधानसभा सीट पर दावेदारी कर रहे सतीश यादव की राजनीति का गणित समझिए

आज हम जो विषय आपके लिए लेकर आए हैं वह है रेवाड़ी विधानसभा सीट पर अचानक कुछ अधिक तेजी के साथ सक्रिय हुए सतीश यादव की। उनकी चाय पर चर्चा की, उनके नए स्टाइल की।

सतीश यादव ने भाजपा में शामिल होने के बाद पहली बार इतनी सक्रियता दिखाई है। जब वह पिछली बार भाजपाई बने थे तो पूरी तरह निष्क्रिय थे, लेकिन अब उनके काम में तेजी आ चुकी है। उन्होंने चुनाव लड़ने की मंशा जाहिर कर दी है। मॉडल टाउन में अपना चुनाव कार्यालय भी खोल दिया है। सतीश यादव की राजनीति को समझने के लिए थोड़ा सा अतीत में जाने की जरूरत है। बार एसोसिएशन के प्रधान पद का चुनाव जीतने के बाद चर्चित हुए सतीश यादव को राजनीति में पहली बार बड़ी पहचान मिली जिला प्रमुख बनने से। जिला प्रमुख बनाने में राव इंद्रजीत का योगदान रहा। राव से निकटता बढ़ी तो सतीश उनके हनुमान बन गए, लेकिन रेवाड़ी विधानसभा सीट से अपने पहले चुनाव के बाद वह राव इंद्रजीत से दूर हो गए। दूसरी बार सतीश ने इनेलो की टिकट पर फिर रेवाड़ी से चुनाव लड़ा, लेकिन पहले की तरह दूसरे चुनाव में भी दूसरा स्थान मिला। इसके बाद लगा कि सतीश यादव की राजनीति पर ग्रहण लगने वाला है, लेकिन नगर परिषद के चुनाव में जब पत्नी उपमा यादव ने चेयरपर्सन के चुनाव में भी दमदार प्रदर्शन किया तो इनकी उम्मीदें जाग गई। इन्हें लगा कि अभी लोगों के बीच उनकी पैठ बरकरार है, लेकिन सतीश को किसी ठिकाने की तलाश थी। एक बार फिर चुनाव से पूर्व उन्हें भाजपा में शामिल होने का मौका मिल गया, जिसका लाभ लेने के लिए सतीश इन दिनों जुटे हुए हैं। आप अपनी स्क्रीन पर देख रहे हैं कि किस तरह वह शहर के पार्कों में पहुंचकर, कभी धारूहेड़ा पहुंचकर तो कभी किसी साथी के यहां चाय पर पहुंचकर खुद की ताकत तौल रहे हैं। सतीश यादव की चाय में लोगों को भी इन दिनों कुछ ज्यादा ही मिठास नजर आ रही है। जनसंपर्क में अचानक तेजी को लोग अलग अलग नजरिए से देख रहे हैं। अब यह तो माना जाने लगा है कि सतीश यादव चुनाव लड़ने के प्रति इस बार गंभीर है, लेकिन उनकी भाजपा से टिकट की दावेदारी में रोड़े कम नहीं है। भाजपा में उनकी टिकट की कुछ कमजोर कड़ी है। उनका पहली बार पार्टी में आकर शांत रहना, लोकसभा चुनावों के दौरान घी खिचड़ी होकर केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह के लिए वोट न मांगना, अन्य पुराने कार्यकर्ताओं के मुकाबले नया चेहरा होना और राजनीतिक निष्ठा के मामले में अस्थिरता दिखाना सबसे कमजोर कड़ियां हैं। राव इंद्रजीत किसी भी सूरत में नहीं चाहेंगे कि सतीश यादव पावरफुल बनें, क्योंकि सतीश ने राव के बारे में बयानों के ऐसे तीर चलाए हुए हैं, जिन्होंने राव को जख्म दिए हैं।

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ऐसा नहीं है कि सतीश का केवल कमजोर पक्ष ही है। कुछ बातें उनकी ताकत भी है। सतीश यादव के पास अपने कार्यकर्ताओं की एक अच्छी टीम का होना, लोगों में काम करवाने वाले जन प्रतिनिधि की छवि होना और विधानसभा चुनाव व नगर परिषद चेयरपर्सन के आम चुनाव में दूसरे स्थान पर रहकर खुद को साबित करना उनका सकारात्मक पक्ष है। सतीश यादव, भाजपा से टिकट की उम्मीद केवल एक कारण से कर रहे हैं। वह चाह रहे हैं कि एक निष्पक्ष सर्वे हो और अगर उनका नाम आगे आए तो पार्टी उन्हें टिकट दे, लेकिन अंदर की खबर यह भी है कि इस बार सतीश टिकट न मिलने पर भी मैदान में उतरेंगे। जो भूमिका पहले रणधीर सिंह कापड़ीवास ने निभाई थी, कुछ उसी राह पर सतीश आगे बढ़ते दिख रहे हैं। यह चर्चा भी आम हो चुकी है कि अगर भाजपा टिकट नहीं देती है तो सतीश यादव आम आदमी पार्टी से भी चुनाव लड़ सकते हैं। हमारा कहना यह है कि जिनकी दुकान में सामान होता है, वहां ग्राहक चलकर आ ही जाते हैं। इनेलो, जजपा, बसपा व आम आदमी पार्टी सहित कई दल ऐसे हैं, जिन्हें अपने वोट बैंक को बढ़ाने के लिए सतीश यादव जैसे चेहरों की जरूरत है। हमें सतीश यादव के समर्थकों से जो फीडबैक मिल रहा है वह यही है की निर्दलीय या किसी गैर भाजपा पार्टी से चुनाव लड़ने की सूरत में कैप्टन अजय सिंह यादव के तमाम विरोधी सतीश की मदद के लिए आगे आएंगे। सतीश की इस बार की उम्मीद का बड़ा आधार यह भी है। इस बार उनका चुनाव प्रचार का तरीका महंगा नहीं है, लेकिन सीधे लोगों के बीच पैठ बनाने वाला है। अभी उनकी जीत या हार की बात करना जल्दबाजी होगा, लेकिन हम यह कह सकते हैं कि इस बार रेवाड़ी से जो तीन-चार गंभीर चेहरे मैदान में होंगे, उनमें से एक सतीश यादव का चेहरा होगा। उनके सामने अभी पार्टी के अंदर टिकट की लड़ाई जीतने और टिकट मिलने के बाद अपनों का साथ पाने की बड़ी चुनौती रहेगी।