हिसार व हांसी में राव की राजनीति, चौ.धर्मबीर संग आगे बढ़ी ‘रणनीति’

हिसार व हांसी में राव की राजनीति, चौ.धर्मबीर संग आगे बढ़ी 'रणनीति'

पिछले दो दिन से केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह फिर चर्चा में हैं। राव कहीं जाए और चर्चा न हो, यह हो ही नहीं सकता। यह सवाल पूछा जा रहा है कि हिसार व हांसी पहुंचकर राव ने क्या राजनीति की है? उन्होंने भिवानी महेंद्रगढ़ के सांसद चौ. धर्मबीर के संग अपनी रणनीति को कितना आगे बढ़ाया है? उनकी रणनीति क्या है? उनके मुख्यमंत्री बनने के चांस खत्म हो गए या नायब सैनी को चेहरा घोषित करने के बाद भी कुछ उम्मीद बची हुई है। लोग सवाल पूछ रहे हैं कि इंद्रजीत और धर्मबीर की जोड़ी क्या करेगी? क्या इंसाफ पार्टी जिंदा होगी? आरती राव आने वाले समय में क्या करेगी? आज ऐसे ही ढेर सारे सवालों का जवाब देखते है।

NJP HARYANA

कल 6 जुलाई को यादव धर्मशाला हिसार में राव का अभिनंदन हुआ। बार एसोसिएशन हिसार के कार्यक्रम में भी राव पहुंचे, जबकि 7 जुलाई को यादव सभा की ओर से हांसी में उनका अभिनंदन हुआ। राव ने यहां पर अमर शहीद राव तुलाराम की स्मृति में बनाई यादव धर्मशाला का शिलान्यास किया। खास बात यह है कि 7 जुलाई को ही हांसी में भाजपा में सक्रिय कृष्ण सहरावत चेयरमैन की ओर से आयोजित राजनीतिक समारोह सहित कुछ अन्य स्थानों पर सांसद चौधरी धर्मबीर सिंह भी उनके साथ रहे। राव का अपने जोड़ीदार धरमबीर के साथ हांसी के अभिनंदन समारोह में पहुंचना और लगातार दो दिन तक हिसार जिले में रुके रहना बड़े घटनाक्रम माने जा रहे हैं। हालांकि यादव समाज का अपने ही समाज के नेता का अभिनंदन करना राजनीतिक दृष्टि से बड़ा घटनाक्रम नहीं है, लेकिन इंद्रजीत के दौरे का राजनीतिक महत्व इसलिए बढ़ गया है, क्योंकि इसमें राजनीति की गहरी समझ रखने वालों को राजनीति भी नजर आ रही है। विधानसभा चुनाव से ठीक पहले आयोजन होना, उनके साथ चौधरी धर्मबीर सिंह का होना, हिसार बार एसोसिएशन में पहुंचना, गुरु जंभेश्वर यूनिवर्सिटी की फैकल्टी से मुलाकात करना, हांसी पहुंचकर मंडी एसोसिएशन के प्रतिनिधियों से संवाद करना और इसके अलावा भी कई अन्य स्थानों पर चाय के लिए पहुंचना खास कहा जा रहा है। राव इतनी फुर्सत के साथ समय कम ही देते हैं। राव के शिष्य, कैबिनेट मंत्री डॉ. बनवारी लाल ने भी हिसार के कार्यक्रम में पहुंचकर उपस्थिति दर्ज कराई। राव के खास सिपहसालार, नारनौल के विधायक व पूर्व मंत्री ओम प्रकाश यादव तो छाया की तरह यादव सभा के कार्यक्रमों में अहम भूमिका निभा ही रहे थे। हांसी के ओम प्रकाश यादव व कृष्ण चेयरमैन व्यक्तिगत रूप से भी सक्रिय रहे। हिसार क्षेत्र में राव व चौ. धर्मबीर समर्थकों ने भी और इस जोड़ी ने भी खुद को अहीर-जाट एकता की तरह प्रस्तुत किया। जाट-गैर जाट की राजनीति में उलझी हरियाणा की राजनीति में अहीर-जाट एकता का नहीं, बल्कि इससे भी अधिक सर्वजातीय एकता का संदेश दिया गया। इंद्रजीत ने यह संदेश भी स्पष्ट रूप से दिया कि उनके सामाजिक आयोजन व जलपान कार्यक्रम भाजपा के खिलाफ नहीं, बल्कि भाजपा की ताकत बढ़ाने के लिए हो रहे हैं। यह अलग बात है कि राव इस बहाने अपनी ताकत बढ़ाने का और अपनी ताकत तौलने का भी प्रयास कर रहे हैं। साथ ही पार्टी को भी यह संदेश दे रहे हैं कि अहीरवाल से बाहर भी उनकी थोड़ी बहुत पकड़ जरूर हैं।

मुख्यमंत्री बनने के सवाल पर राव ने पार्टी लाइन से हटकर कोई बात नहीं की। उन्होंने पत्रकारों से बातचीत में अमित शाह के उस फरमान को भी विनम्रता से स्वीकार किया, जिसमें उन्होंने नायब सैनी के नेतृत्व में ही विधानसभा चुनाव लड़ने की बात कही थी। हालांकि अपने समर्थकों के कंधों पर बंदूक रखकर राव इंद्रजीत ने कैबिनेट मंत्री न बनाए जाने का मन में छुपा दर्द अवश्य प्रकट कर दिया। राव ने कहा कि वह शायद अकेले ऐसे सांसद हैं जिन्हें केवल राज्यमंत्री ही बनाया जा रहा है। इसी कारण उनके समर्थकों में नाराजगी है। राव ने जब नायब सैनी के नेतृत्व पर मुहर लगाई तो कुछ लोगों ने इसे राव का हथियार डालना भी कहा, लेकिन यह अकेले राव की बात नहीं थी। राव सहित CM की रेस में शामिल तमाम नेता उसी दिन मुख्यमंत्री पद की दौड़ से बाहर हो गए थे, जिस दिन शाह ने पंचकूला में नायब सैनी के नाम पर मुंह पर लगाई थी। राव के पास इस निर्णय को स्वीकार करने के अलावा कोई उपाय बचा भी नहीं था। अब उनके पास दबाव बनाने के लिए एक यही रणनीति बची है कि वह पार्टी के भीतर ही चौधरी धर्मबीर जैसे अपने खास साथियों के साथ न केवल अहीरवाल में अपनी जड़े मजबूत करें बल्कि अहीरवाल से बाहर भी अपना जलवा दिखाते रहें। ऐसा करके वह न केवल मनपसंद ठिकाने से अपनी बेटी आरती राव की टिकट हासिल कर पाएंगे, बल्कि अपने साथ जुटे चौधरी धर्मबीर जैसे सांसदों व अन्य साथियों के चहेतों को भी कुछ दिला पाएंगे।

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अब पहले राव के CM बनने के चांस बचे हैं या नहीं, इस पर हम अपना दृष्टिकोण आपको बताते हैं। हमारा यह मानना है कि स्पष्ट बहुमत आने की स्थिति में भाजपा नायब सैनी को ही मुख्यमंत्री बनाएगी और स्पष्ट बहुमत की थोड़ी सी संभावना तभी बन पाएगी, जब राव व धर्मबीर जैसे चेहरे पूरी मेहनत के साथ पार्टी के लिए पसीना बहाएंगे। राव पसीना तब बहाएंगे, जब उन्हें इसका इनाम दिया जाएगा। इस मेहनत के बदले में राव अपनी बेटी के लिए सिर्फ टिकट नहीं, ओहदा भी चाहेंगे। कुछ टिकट भी चाहेंगे। विरोधियों के टिकट कटवाना भी चाहेंगे। नायब सैनी का नाम स्पष्ट होने के बाद राव समर्थकों ने आरती राव के उप मुख्यमंत्री और राव के कैबिनेट मंत्री बनने की उम्मीद करनी शुरू कर दी है।
समर्थकों की उम्मीदें बड़ी है, लेकिन पार्टी से उम्मीदें कम है। ऐसी स्थिति में अहम सवाल यह है कि अगर भाजपा अधिक दबाव में नहीं आई तो राव इंद्रजीत व धर्मबीर की जोड़ी क्या करेगी? क्या इंसाफ पार्टी मैदान में आ जाएगी?

हम यहां थोड़ा सा चीजों को स्पष्ट करना चाहेंगे। जिस इंसाफ मंच की चर्चा होती है वह सामाजिक संगठन है और इंद्रजीत की बेटी आरती राव इसका नेतृत्व कर रही है। कोरोना काल में एक गैर सरकारी संस्था के रूप में इंसाफ मंच को तत्कालीन मुख्यमंत्री मनोहर लाल सम्मानित भी कर चुके हैं। राव ने पत्रकारों से बातचीत में कल इसी इंसाफ मंच की चर्चा की थी। हमारा यह मानना है कि भाजपा ने राव की शर्तों से पूरी तरह मुंह मोड़ा तो फिर यही इंसाफ मंच, इंसाफ पार्टी के रूप में भी दिखाई दे सकता है और राव व धर्मवीर खुद भाजपा में रहते हुए विरासत संभालने को तैयार बैठी अपनी नई पीढ़ी को फैसला लेने के लिए आजाद छोड़ सकते हैं। ऐसी स्थिति में चुनाव मैदान में कुछ राव समर्थक, आजाद चेहरे के रूप में नजर आए तो आश्चर्य नहीं होगा। इसी गणित में राव के लिए मुख्यमंत्री की धुंधली सी उम्मीद भी छुपी हुई है। जिस तरह दुष्यंत चौटाला ने मात्र दस विधायकों के दम पर 5 साल हरियाणा में चौधर की, कुछ इसी तरह आने वाले समय में हम देख सकते हैं। हालांकि इसकी संभावना बेहद कम है लेकिन है जरूर। हमारा यह निष्कर्ष भी स्पष्ट है कि उपेक्षा होने पर भी राव व धर्मबीर भाजपा छोड़कर कांग्रेस में नहीं जाएंगे, लेकिन इस बार बच्चों का भविष्य बनाने के लिए पर्दे के पीछे रहकर किसी भी हद तक जाएंगे। हिसार और हांसी पहुंच कर दोनों ने कुछ इसी तरह का संदेश दिया है। राव व उनके जोड़ीदार की राजनीति पर आज इतना ही। वैसे हमारी आज की यह स्टोरी केवल भाजपा पर ही केंद्रित है, लेकिन हरियाणा में कांग्रेस के लिए भी संभावना के द्वार खुले हुए हैं। अभी तो गाय आने से पहले खूंटा कहां गाड़ा जाएगा की लड़ाई चल रही है।

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